जैसा पिछले पोस्ट में मैंने बताया कि हिंदी ब्लोगिंग की शुरुआत ०२ मार्च २००३ को हुई थी और हिंदी का पहला अधिकृत ब्लॉग होने का सौभाग्य प्राप्त है नौ दो ग्यारह को । वर्ष-२००३-२००४ हिंदी ब्लोगिंग का पूर्वार्द्ध काल है । इन दोनों वर्षों में हिंदी ब्लोगिंग का बहुत ज्यादा विकास नहीं हो पाया, यह क्रम कमोवेश वर्ष-२००७ तक चला । वर्ष-२००८ में हिंदी ब्लॉग निर्माण में अप्रत्याशित ढंग से वृद्धि हुई और वर्ष-२००९ आते- आते वृद्धि दर एक सम्मानजनक सोपान पर पहुँचने में सफल रही ।

ऐसे में वर्ष-२००३ से वर्ष-२००७ का काल हिंदी ब्लोगिंग के लिए शैशव काल रहा । इस दौरान साधन और सूचना की सर्वाधिक न्यूनता रही , किन्तु कुछ समर्पित ब्लोगरों ने मिलकर व्यापक प्रयास किये ताकि हिंदी में ब्लोगिंग की ताकत का अंदाजा हो सके । अलग-अलग देशों में रहने वाले ब्लोगरों के कुछ समूह ने हिंदी ब्लोगिंग को संस्थागत रूप देने और नए ब्लोगरों को प्रोत्साहित करने में अहम् भूमिका निभायी । उन्होंने तकनीकी गुत्थियां सुलझाने , नए ब्लोगरों को तकनीकी मदद देने, हिंदी टाईपिंग और ब्लोगिंग के लिए सोफ्टवेयरों का विकास करने तथा ब्लोगिंग को अधिकतम लोगों तक पहुंचाने के लिए ब्लॉग एग्रीगेटरों का निर्माण करने आदि की दिशा में व्यापक पहल की गुंजाईश बनाए रखा ।


हिंदी के प्रारंभिक चिट्ठाकारों में से एक श्री अनूप शुक्ल का कहना है कि -"विनय जैन सबसे शुरुआती ब्लॉगरों में हैं। इसके अलावा अतुल अरोरा, तरुण, आशीष श्रीवास्तव, प्रेम पीयूष ,ई-स्वामी ,रचना बजाज, रत्ना की रसोई आदि कई सक्रिय शुरुआती दौर के सशक्त ब्लोगर रहे हैं । मेरे समझ से वर्ष-२००६ महत्वपूर्ण सामग्री परोसने के लिहाज से बहुत उपयोगी रहा। आप अक्षरग्राम की कडियां देखें तो पायेंगे जैसे लेख अनुगूंज के माध्यम से उन दिनों लिखे गये वैसे अब नहीं लिखे जाते। मेरी समझ में हिंदी ब्लॉगजगत मे अब तक के सबसे बेहतरीन लेखों में से कुछ लेख अनूगूंज में मिलेंगे। इसी क्रम में बुनो कहानी, निरंतर, ब्लॉगनाद, पॉडभारती जैसे प्रयास हुये । बालेन्दु दधीच के लेख से पहले हिंदी ब्लॉगिंग पर एक लेख वागर्थ में छपा था जिसे अनूप सेठी जी ने लिखा था जिसका शीर्षक था- http://web.archive.org/web/20051211230314/http://vagarth.com/feb05/internet/index.htm हिंदी का नया चैप्टर- ब्लॉग!
इस लेख की भाषा हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में देखिये-यहां गद्य गतिमान है। गैर लेखकों का गद्य। यह हिन्दी के लिए कम गर्व की बात नहीं है। जहां साहित्य के पाठक काफूर की तरह हो गए हैं, लेखक ही लेखक को और संपादक ही संपादक की फिरकी लेने में लगा है, वहां इन पढ़े-लिखे नौजवानों का गद्य लिखने में हाथ आजमाना कम आह्लादकारी नहीं है। वह भी मस्त मौला, निर्बंध लेकिन अपनी जड़ों की तलाश करता मुस्कुराता, हंसता, खिलखिलाता जीवन से सराबोर गद्य। देशज और अंतर्राष्ट्रीय। लोकल और ग्लोबल। यह गद्य खुद ही खुद का विकास कर रहा है, प्रौद्योगिकी को भी संवार रहा है। यह हिन्दी का नया चैप्टर है।


'चिट्ठाकारों की चपल चौपाल' के नाम से चर्चित 'अक्षर ग्राम' नेटवोर्क ऐसा ही एक समूह था , जिसके सदस्यों में पंकज नरूला (अमेरिका) , जीतेन्द्र चौधरी (कुबैत) , ई स्वामी, संजय बेंगाणी, अमित गुप्ता, पंकज वेंगाणी, निशांत वर्मा, विनोद मिश्रा, अनूप शुक्ल और देवाशीष चक्रवर्ती शामिल थे । अक्षरग्राम नेटवर्क से जुड़ने वाले अन्तिम सदस्य थे श्रीश शर्मा ।देबाशीष चक्रवर्ती और अनूप शुक्ल समूह की ऍडवाइजरी में थे।

ई पंडित के अनुसार शुरु के चिट्ठाकारों में निम्न लोग थे - "पंकज नरूला,प्रत्यक्षा सिन्हा,रमण कौल, रविशंकर श्रीवास्तव, ई-स्वामी, जीतेंद्र चौधरी, अनुनाद सिंह, विनय जैन, प्रतीक पाण्डे, जगदीश भाटिया, मसिजीवी, उन्मुक्त, शशि सिंह, अतुल अरोरा, सृजन शिल्पी, सुनील दीपक, नीरज दीवान, श्रीश शर्मा, पूर्णिमा वर्मन, डॉ जगदीश व्योम आदि तथा बाद के चिट्ठाकारों में निम्न लोग थे- हरिराम, अफ़लातून देसाई, शास्त्री जे सी फिलिप, आलोक पुराणिक,ज्ञान दत्त पाण्डेय, काकेश, घुघूती बासूती, अभय तिवारी, नीलिमा, आभा, बोधिसत्व, अविनाश दास, गौरव सोलंकी, अर्जुन स्वरूप, अशोक कुमार पाण्डेय ,अतानु दे, अविजित मुकुल किशोर, बिज़ स्टोन, चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन, चारुकेसी रामदुरई, हुसैन ,दिलीप डिसूजा, दीनामेहता ,मार्क ग्लेसर, नितिन पई, वरुण अग्रवाल, जय प्रकाश मानस, अनूप भार्गव, रबिश कुमार, अनाम दास, मनीष कुमार आदि ।"

इसप्रकार हिंदी ब्लोगिंग के शैशव काल ( वर्ष -२००३ से २००७ के मध्य ) के दौरान जगदीश भाटिया, मसिजीवी, आभा, , बोधिसत्व, अविनाश दास, अनुनाद सिंह, शशि सिंह,गौरव सोलंकी, पूर्णिमा वर्मन, अफ़लातून देसाई, अर्जुन स्वरूप, अतुल अरोरा, अशोक कुमार पाण्डेय ,अतानु दे, अविजित मुकुल किशोर, बिज़ स्टोन, चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन, चारुकेसी रामदुरई, हुसैन , दिलीप डिसूजा, दीनामेहता ,डॉ जगदीश व्योम , ई-स्वामी, जीतेंद्र चौधरी,मार्क ग्लेसर, नितिन पई, पंकज नरूला,प्रत्यक्षा सिन्हा,रमण कौल, रविशंकर श्रीवास्तव, शशि सिंह,विनय जैन, वरुण अग्रवाल, सृजन शिल्पी, सुनील दीपक, नीरज दीवान, श्रीश शर्मा, जय प्रकाश मानस, अनूप भार्गव, शास्त्री जे सी फिलिप , हरिराम, आलोक पुराणिक,ज्ञान दत्त पाण्डेय , रबिश कुमार, अभय तिवारी, नीलिमा, अनाम दास, काकेश, मनीष कुमार,घुघूती बासूती , उन्मुक्त जैसे उत्साही ब्लोगर हिंदी ब्लोगिंग की सेवा में सर्वाधिक सक्रिय रहे ।


इसी दौरान 'तरकश समूह' ने भी ब्लॉग पोर्टल के रूप में एक अच्छी शुरुआत की । इसी दौरान सर्वाधिक चर्चित एग्रीगेटर 'नारद' के कुछ प्रतिद्वंदी एग्रीगेटर भी सामने आये , जिनमें ब्लोगवाणी, चिट्ठाजगत और हिंदी ब्लोग्स. कॉम प्रमुख है । हलांकि हिन्दीब्लॉग्स.कॉम नारद के कुछ समय बाद से शुरु हो गया था और ब्लॉगवाणी, चिट्ठाजगत आदि से बहुत पहले आ चुका था। वर्ष -२००६ और उसके बाद अपनी सक्रियता और सकारात्मक टिप्पणी के माध्यम से व्यापक प्रभामंडल विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया कनाडाई भारतीय समीर लाल समीर ने ।


वर्ष-२००७ के अक्तूबर माह में प्रभा साक्षी. कौम (पोर्टल) के संचालक बालेन्दु दधिची का एक आलेख 'ब्लॉग बने तो बात बने' कादंबनी में प्रकाशित हुआ । इस आलेख से प्रभावित होकर कई ब्लोगरने हिंदी ब्लोगिंग में अचानक अवतरित हुए और आज भी पूरी दृढ़ता के साथ सक्रिय हैं । इसी समय अविनाश वाचस्पति ने भी बगीची के माध्यम से अपनी सार्थक उपस्थिति दर्ज कराई और जाकिर अली रजनीश विषय परक ब्लॉग तस्लीम लेकर आये । शैशव काल के उत्तरार्द्ध में डा. अरविन्द मिश्र ने भी साई ब्लॉग के माध्यम से अपनी प्रतिभा को नयी धार देने की जबरदस्त कोशिश की । इन दोनों विषयपरक ब्लोग्स ने तो विज्ञान विषयक प्रस्तुति कर नयी क्रान्ति की प्रस्तावना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ।ज्ञान-विज्ञान नाम से सामूहिक ब्लॉग की शुरुआत आशीष गर्ग ने की शायद साई और तस्लीम के पहले।

कादंबनी में प्रकाशित बालेन्दु दधिची के आलेख 'ब्लॉग बने तो बात बने' से प्रेरित होकर ही शशि सिंघल, संगीता पुरी आदि कुछ महिला चिट्ठाकारों ने भी वर्ड प्रेस पर अपना ब्लॉग बनाया था । एक और प्रमुख महिला चिट्ठाकारा रचना मई २००७ से ब्लॉग पर लिख रही हैं और २००८ से नारी ब्लॉग जो पहला ब्लॉग समूह हैं जहां नारियां अपनी बात कहती हैं को सक्रियाए रूप से चला रही हैं ।

बालेन्दु का ऐसा मानना है कि " ब्लोगिंग की दुनिया पूरी तरह स्वतंत्र, आत्म निर्भर और मनमौजी किस्म की रचनात्मक दुनिया है, इसलिए इसकी व्यापकता और विस्तृत प्रभामंडल का सहज आभास होता है । " उनके अनुसार -" समूचे ब्लॉग मंडल का आकार हर छ: महीने में दोगुना हो जाता है । "

हिंदी के बहुचर्चित ब्लोगर रवि रतलामी का मानना है कि " ब्लॉग वेब-लॉग का संक्षिप्त रूप है, जो अमरीका में '1997' के दौरान इंटरनेट में प्रचलन में आया। प्रारंभ में कुछ ऑनलाइन जर्नल्स के लॉग प्रकाशित किए गए थे, जिसमें जालघर के भिन्न क्षेत्रों में प्रकाशित समाचार, जानकारी इत्यादि लिंक होते थे, तथा लॉग लिखने वालों की संक्षिप्त टिप्पणियाँ भी उनमें होती थीं। इन्हें ही ब्लॉग कहा जाने लगा। ब्लॉग लिखने वाले, ज़ाहिर है, ब्लॉगर कहलाने लगे। प्राय: एक ही विषय से संबंधित आँकड़ों और सूचनाओं का यह संकलन ब्लॉग तेज़ी से लोकप्रिय होता गया। हिन्दी ब्लॉगिंग शैशवा-वस्था से आगे निकल कर किशोरावस्था को पहुँच रही है। अलबत्ता इसे मैच्योर होने में बरसों लगेंगे. अंग्रेज़ी के गुणवत्ता पूर्ण (हालांकि वहाँ भी अधिकांश - 80 प्रतिशत से अधिक कचरा और रीसायकल सामग्री है,), समर्पित ब्लॉगों की तुलना में हिन्दी ब्लॉगिंग पासंग में भी नहीं ठहरता. मुझे लगता है कि तकनीक के मामले में हिन्दी कंगाल ही रहेगी. बाकी साहित्य-संस्कृति से यह उत्तरोत्तर समृद्ध होती जाएगी ...!"

अविनाश वाचस्पति का मानना है कि - "हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की दशा समाज से बेहतर को निकाल कर और अपने साथ लेकर बेहतरीन की ओर अग्रसर है जिससे समाज और ब्‍लॉगिंग की दिशा अपनेपन के प्रचार प्रसार में मुख्‍य भूमिका निभा रही है। इसका एक अहसास आप रोजाना कहीं-न-कहीं आयोजित हो रहे ब्‍लॉगर मिलन के संबंध में जारी की गई पोस्‍टो में महसूस कर सकते हैं और इसका सकारात्‍मक और स्‍वस्‍थ असर आप शीघ्र ही समाज पर महसूस करेंगे।" वहीँ हिंदी के प्रमुख अनाम ब्लोगर उन्मुक्त मानते हैं कि -"मैंने सबसे पहले चिट्ठी 'अभिनेता तथा गायक' नाम से २७ फरवरी २००६ नाम से लिखी। उस समय कम लोग लिखते थे। आजकल अक्सर हो जाने वाले व्यक्तिगत विवाद भी कम थे। अब यह संख्या भी बढ़ गयी है और विवाद भी।"


एक प्रश्न के उत्तर में समीर लाल समीर ने स्वीकार किया है कि -"शुरूआती दौर में मैं हिन्दी में कुछ कविताएँ लिखने का प्रयास किया करता था और याहू पर ईकविता ग्रुप से २००५ में जुड़ा. वहाँ हिन्दी कविता वालों का जमावड़ा था और वहीं से हिन्दी ब्लॉग के बारे में जाना.जब मार्च २००६ में अपना ब्लॉग बनाया, तब तक मैं ईकविता ग्रुप में एक पहचान तो बना ही चुका था लेकिन निश्चित ही ब्लॉगजगत में आकर इतना स्नेह और लोकप्रियता हासिल होगी, यह कभी नहीं सोचा था.इसी माध्यम से जुड़ाव के बाद अनूप शुक्ला ’फुरसतिया’ जी ने मुझे गद्य लेखन के लिए उकसाया और बस तब से गद्य पद्य दोनों ही क्षेत्रों में हल्के फुल्के प्रयास जारी हैं. लोग पसंद कर लेते हैं, हौसला मिलता है और निरंतरता बनी हुई है ...!

"वर्ष-२००७ के शुरूआती क्षणों में अपनी सार्थक उपस्थिति से सभी अचंभित करने वाले ज्ञान दत्त पाण्डेय कहते हैं कि - " जब शुरू किया था (हिन्दी ब्लॉग की पहली पोस्ट २३ फरवरी २००७ की है), तो भाषा अटपटी थी। अब भी है। वाक्य यूं बनते थे, और हैं, मानो अंग्रेजी के अनुवाद से निकल रहे हों। फिर भी काम चल गया। लोग हिन्दी का ब्लॉगर मानने लगे।

शायद लिखने कहने का मसाला था। शायद हिन्दी-अंग्रेजी समग्र में जो पढ़ा था वह बेतरतीब जमा हो गया था व्यक्तित्व में। शायद भाषा की कमी कहने की तलब को हरा न पा रही थी। शायद लिख्खाड़ों का अभिजात्य और उनकी ठीक लिखने की नसीहत चुभ रही थी। लेखन/पत्रकारिता के क्षेत्र में छद्म इण्टेलेक्चुयेलिटी बहुत देख रखी थी, और वही लोग आपको नसीहत दें कि कैसे लिखना है, तो मन जिद पकड़ रहा था। अर्थात काफी बहाना था अप्रतिहत लिखते चले जाने का।"


पहली बार परिकल्पना पर ब्लॉग विश्लेषण वर्ष-२००७ में प्रस्तुत किया गया । इसी वर्ष विज्ञान, साहित्य, संस्कृति और मीडिया से जुड़े कई महत्वपूर्ण ब्लॉग अस्तित्व में आये जो आगे चलकर व्यापक प्रभामंडल विकसित करने में सफलता पायी । उन्मुक्त और रवि रतलामी तकनी जानकारी देने की दिशा में पूरी प्रतिबद्धता के साथ लोकप्रिय हुए । पंकज सुबीर, नीरज गोस्वामी आदि ने अपनी साहित्यिक छवि को संवारने का महत्वपूर्ण कार्य किया वहीँ दिनेश राय द्विवेदी कानूनी सलाहकार के रूप में प्रख्यात हुए । इसी काल क्रम में सुप्रसिद्ध हास्य कवि अशोक चक्रधर ने भी हिंदी ब्लोगिंग को समृद्ध करने के उद्देश्य से ब्लॉग जगत में सक्रिय हुए और प्रमोद सिंह ने अजदक के माध्यम से हिंदी के नए शिल्प और बिंव से हिंदी पाठकों को रूबरू कराया ।

इस दौर के एक और ब्लोगर ने प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हिंदी ब्लोगिंग को सींचने का कार्य किया वे हैं अमर कुमार , जिनका कहना है कि- "हिन्दी ब्लॉगिंग के इतिहास को एक समेटने का आपका प्रयास कितना श्रमसाध्य है, यह सोच कर ही झुरझुरी होती है, क्योंकि मैंनें वर्ष २००९ के उत्तरार्ध में इसकी योजना बनायी थी, किन्तु इसके सर्वेक्षण में ही मेरा दम निकल गया.. और फिर मुझे अपने यूँ ही निट्ठल्ला का मान रखना था, अतः मैं चुप हो बैठ गया । अपने सपने को यूँ साकार होते देख मुझे क्या लग रहा है, यह न बता पाऊँगा.. कुछ अच्छा या बहुत अच्छा जैसे शब्द गौण हैं यहाँ ।"
अभी जारी है .......

30 टिप्पणियाँ:

  1. नए ब्लोगरों के लिए जानकारी से परिपूर्ण आलेख, अच्छा लगा आपका यह अध्ययन ....

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  2. बहुत खूब, बहुत सुन्दर विश्लेषण ..आदि चिट्ठाकारों के बारे में जानकर अच्छा लगा , संग्रहनीय है आपका आलेख !

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  3. BLOGING PAR SHODH KARANE VALON KE LIYE AAPKA AALEKH BEHAD SAHAYAK HOGA. MAAN GAYE AAP KO. GAZAB KI MEHANAT HUI HAI..BADHAI. ISAKE PAHALE BHI AAP YE SUB KAR CHUKE HAI. AAP AKELE AISE VYAKTI HAI, JO ITANI EEMANDAREE SE VISHLESHAN KARATA HAI. BINA KISI JOD-TOD KE.....

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  4. praranbhik chitthaakaaron ke baare men jaananaa sukhad hai ....!

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  5. जानकारी से परिपूर्ण आलेख, अच्छा लगा

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  6. रचना मई २००७ से ब्लॉग पर लिख रही हैं और २००८ से नारी ब्लॉग जो पहला ब्लॉग समूह हैं जहां नारियां अपनी बात कहती हैं को सक्रियाए रूप से चला रही हैं । क्युकी मेरा ज़िक्र आप ने आज तक कहीं नहीं किया सोचा आप को सूचित करदूं कि मै भी एक ब्लॉगर हूँ और काफी समय से हिंदी मै ब्लोगिंग कर रही हूँ ।

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  7. वाह बेहद उपयोगी संग्रहणीय पोस्ट.ब्लोगिंग के इतिहास पर एक पुस्तक लिखी जानी चाहिए.

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  8. रचना जी,
    अभी यह चर्चा जारी है और महिलाओं में केवल अभी २००५-२००६ में सक्रीय प्रत्यक्षा की ही चर्चा हुयी है , २००७ में सक्रीय महिला ब्लोगर की चर्चा अभी शेष है जो अगली कड़ी में प्रस्तुत की जायेंगी, यदि उस समय की और भी कुछ जानकारियाँ हो तो टिपण्णी या मेल पर आप दे सकती हैं ! धन्यवाद आपका रचना जी !

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  9. अपने समस्त ब्लोगर साथियों के लिए निवेदित कर रहा हूँ कि-जिनको भी ऎसा लगे वह अपने ब्लॉग का लिंक , ब्लॉग आरँभ करने की तिथि, ब्लॉग पर लिखे गये पोस्टों की सँख्या का उल्लेख मेल कर सकते हैं । पेज़लोड, पेज़रैंक जैसे तकनीकी टोटके इन दावों को प्रभावित नहीं करते ।

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  10. रवीन्द्र जी, बहुत ही जानकारी भरा आलेख है । आपके मध्यम से हम हिन्दी ब्लॉगिंग के बचपन से वाकिफ हो सके हैं । मैंने भी कादंबनी में प्रकाशित दधिची जी के आलेख 'ब्लॉग बने तो बात बने'से प्रेरित होकर ही अपना ब्लॉग बनाया था ।

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  11. जाकिर अली रजनीश ने विषय परक ब्लॉग तस्लीम लेकर आये । शैशव काल के उत्तरार्द्ध में डा. अरविन्द मिश्र ने भी साई ब्लॉग के माध्यम से अपनी प्रतिभा को नयी धार देने की जबरदस्त कोशिश की । इन दोनों विषयपरक ब्लोग्स ने तो विज्ञान विषयक प्रस्तुति कर नयी क्रान्ति की प्रस्तावना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी ।

    yae sab blog naari blog kae baad yaa samkaaleen baney haen

    aap nirantar kuchh blogs ko ignore kartey aa rhaey haen is liyae kament daena padaa

    maene mahila aur purush ki baat nahin ki thee baat ki thee ki naari blog kaa jikr nahin hua aur uskae baad kae blog kaa jikr hua haen

    is alekh mae sudhar karae agar yae tathyon kae aadhar par haen

    aur agar isko likhna aap ki ruchi kae aadhar aur dosti kae adhaar par haen to mujeh koi bhi aaptti nahin haen

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  12. रचना जी,
    मैंने आपसे पहले ही कहा कि उस समय की कोई भी जानकारी यदि उपलब्ध करा सके तो करावें , रही जाकिर अली जी और अरविन्द मिश्र जी की बात तो विज्ञान से नारी को क्यों जोड़ रही हैं आप ? नारी अथवा पुरुष को विषय में नहीं बांधा जा सकता , मैंने आपको इग्नोर नहीं किया है रचना जी, आप जो भी तथ्यपरक जानकारियाँ देंगी इस आलेख में शामिल कर लिया जाएगा क्योंकि आलेख अभी पूरा नहीं हुआ है, जारी है ...!

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  13. बहुत सुन्दर आलेख, नये चिट्ठाकारों के लिये रुचिकर।

    कुछ मामूल त्रुटियाँ हैं जिनकी तरफ आपका ध्यान दिलाना चाहूँगा, कृपया सुधार लें।

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    अक्षरग्राम नेटवर्क के सदस्यों में एक नाम श्रीश शर्मा भी जोड़ लें। ये उस समूह से जुड़ने वाले अन्तिम सदस्य थे। देबाशीष जी और अनूप जी समूह की ऍडवाइजरी में थे।
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    "उस दौरान जगदीश भाटिया, मसिजीवी, आभा, , बोधिसत्व..."

    यहाँ पर क्रम थोड़ा गलत है। इसे इस प्रकार कर लें।

    शुरु के चिट्ठाकारों में निम्न लोग थे -

    पंकज नरूला,प्रत्यक्षा सिन्हा,रमण कौल, रविशंकर श्रीवास्तव, ई-स्वामी, जीतेंद्र चौधरी, अनुनाद सिंह, विनय जैन, प्रतीक पाण्डे, जगदीश भाटिया, मसिजीवी, उन्मुक्त, शशि सिंह, अतुल अरोरा, सृजन शिल्पी, सुनील दीपक, नीरज दीवान, श्रीश शर्मा, पूर्णिमा वर्मन, डॉ जगदीश व्योम,

    निम्न लोग लगभग २००७ के आसपास या उसके बाद आये -

    हरिराम, अफ़लातून देसाई, शास्त्री जे सी फिलिप, आलोक पुराणिक,ज्ञान दत्त पाण्डेय, काकेश, घुघूती बासूती, अभय तिवारी, नीलिमा, आभा, बोधिसत्व, अविनाश दास, गौरव सोलंकी, अर्जुन स्वरूप, अशोक कुमार पाण्डेय ,अतानु दे, अविजित मुकुल किशोर, बिज़ स्टोन, चंद्रचूदन गोपालाकृष्णन, चारुकेसी रामदुरई, हुसैन ,दिलीप डिसूजा, दीनामेहता ,मार्क ग्लेसर, नितिन पई, वरुण अग्रवाल, जय प्रकाश मानस, अनूप भार्गव, रबिश कुमार, अनाम दास, मनीष कुमार

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    हिन्दीब्लॉग्स.कॉम नारद के कुछ समय बाद से शुरु था और ब्लॉगवाणी, चिट्ठाजगत आदि से बहुत पहले आ चुका था।

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    बाकी इससे आगे का हम कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि उसके बाद हम अज्ञातवास पर चले गये थे और लौटने के बाद हिन्दी विकिपीडिया पर।

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  14. रवीन्‍द्र जी, रचना जी को इस बात की चिढ़ है कि आपने विषय आधारित ब्‍लॉग में उनके 'नारी' ब्‍लॉग की चर्चा नहीं की। शायद वे 'नारी' को विषय ही मानती हैं? :)

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  15. मैने भी वर्डप्रेस में 2007 में ही लिखना शुरू किया था !!

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  16. आपका आभार श्रीश जी,
    मार्गदर्शन के लिए !

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  17. ई पंडित जी, रचना जी, शशि सिंघल जी और संगीता पुरी जी,

    आप सभी के सुझाव को आलेख में शामिल कर लिया गया है , और भी कुछ सुझाव हो तो बताने का कष्ट करें !

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  18. रवीन्‍द्र जी, रचना जी को इस बात की चिढ़ है कि आपने विषय आधारित ब्‍लॉग में उनके 'नारी' ब्‍लॉग की चर्चा नहीं की। शायद वे 'नारी' को विषय ही मानती हैं? :)


    itni ghatiya tippani zakir dae saktey haen log kehtey they mae vishvaas nahin kartee thee aaj khush hun ki naari blog ko aap ke blog kae samkash nahin jodaa gaayaa

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  19. हाँ बालेन्दु जी का आलेख पढ़ कर हमने भी ब्लॉग्गिंग को जाना पर मैदान में उतरे फरवरी -मार्च २००८ में !

    .....आपसे सहमत हूँ कि उस लेख के बाद कई सारे ब्लॉगर इस क्षेत्र में आये !!

    ......अच्छा विवेचन !...मुझे लगता है कि लोगों को सूचनाओं की कड़ियाँ जोड़ने में मदद करनी चाहिए ...ना कि निरर्थक विवाद |
    वैसे भी कमियाँ निकालना जितना आसान है .......इतिहास की कड़ियाँ जोड़ना उतना ही मुश्किल !

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  20. आपने सच कहा प्रवीण जी - लोगों को सूचनाओं की कड़ियाँ जोड़ने में मदद करनी चाहिए ...ना कि निरर्थक विवाद |वैसे भी कमियाँ निकालना जितना आसान है .......इतिहास की कड़ियाँ जोड़ना उतना ही मुश्किल !

    मैं भी अपने ब्लोगर साथियों से यही अपेक्षा रखता हूँ !

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  21. पूरी जानकारी उपयोगी संग्रहणीय है बुक मार्क कर ली। धन्यवाद।

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  22. मुझे याद रखने के लिये शुक्रिया।

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  23. रवीन्द्र प्रभातजी,

    आपने बहुत मेहनत की और बहुत अच्छा काम करने की कोशिश कर रहे हैं इसके लिये बधाई।

    इस तरह के काम में हमेशा बिना किसी इरादे के काफ़ी कुछ छूट जाने की संभावना होती है। यहां भी वही हुआ है। आपकी सहूलियत के लिये मैं आपको अक्षरग्राम का लिंक दे रहा हूं। आप यहां जायेंगे तो देखेंगे कि क्या कुछ आपके उल्लेख से छूट गया है। लिंक यहा रहा।
    http://web.archive.org/web/*/http://akshargram.com

    कुछ बातें जो मैं जोड़ना चाहूंगा वे हैं:
    १. विनय जैन सबसे शुरुआती ब्लॉगरों में हैं। इसके अलावा अतुल अरोरा, तरुण, आशीष श्रीवास्तव, प्रेम पीयूष ,ई-स्वामी ,रचना बजाज, रत्ना की रसोई और कई सक्रिय शुरुआती दौर के ब्लॉगरों का जिक्र किया छूटा है।

    २. आपका यह कहना सही नहीं है कि २००६ महत्वपूर्ण सामग्री परोसने के लिहाज से बहुत उपयोगी नहीं रहा। आप अक्षरग्राम की कडियां देखें तो पायेंगे जैसे लेख अनुगूंज के माध्यम से उन दिनों लिखे गये वैसे अब नहीं लिखे जाते। मेरी समझ में हिंदी ब्लॉगजगत मे अब तक के सबसे बेहतरीन लेखों में से कुछ लेख अनूगूंज में मिलेंगे।
    ३. इसी क्रम में बुनो कहानी, निरंतर, ब्लॉगनाद, पॉडभारती जैसे प्रयास हुये जिनमें से केवल निरंतर का जिक्र हो पाया आपके लेख में।
    ४.बालेन्दु दधीच के लेख से पहले हिंदी ब्लॉगिंग पर एक लेख वागर्थ में छपा था जिसे अनूप सेठी जी ने लिखा था जिसका शीर्षक था- http://web.archive.org/web/20051211230314/http://vagarth.com/feb05/internet/index.htm हिंदी का नया चैप्टर- ब्लॉग! इस लेख की भाषा हिंदी ब्लॉगिंग के बारे में देखिये-यहां गद्य गतिमान है। गैर लेखकों का गद्य। यह हिन्दी के लिए कम गर्व की बात नहीं है। जहां साहित्य के पाठक काफूर की तरह हो गए हैं, लेखक ही लेखक को और संपादक ही संपादक की फिरकी लेने में लगा है, वहां इन पढ़े-लिखे नौजवानों का गद्य लिखने में हाथ आजमाना कम आह्लादकारी नहीं है। वह भी मस्त मौला, निर्बंध लेकिन अपनी जड़ों की तलाश करता मुस्कुराता, हंसता, खिलखिलाता जीवन से सराबोर गद्य। देशज और अंतर्राष्ट्रीय। लोकल और ग्लोबल। यह गद्य खुद ही खुद का विकास कर रहा है, प्रौद्योगिकी को भी संवार रहा है। यह हिन्दी का नया चैप्टर है।
    ५. इसी तरह महिला ब्लॉगरों के उल्लेख में बहुत कुछ छूटा है। कई ब्लॉगरों के नाम तो छूटे ही हैं।

    यह सब मैं अपनी तुरंत याद के आधार पर बता रहा हूं। यह बताने का उद्देश्य आपके काम को कमतर बताना नहीं है। सिर्फ़ यह इशारा करना चाहता हूं कि नेट पर ही ऐसे संदर्भ मौजूद हैं जिनके आधार पर आप शुरुआती दौर में हुयी ब्लॉगिंग गतिविधियों को और बेहतर और सही तरीके से पेश कर सकते हैं!

    दो संदर्भ और प्रयोग कर सकते हैं एक चिट्ठाचर्चा और दूसरा इंडीब्लॉगीस की इनाम वाली पोस्टें।

    रचना सिंह जी के अलावा उनसे पहले रचना बजाज भी सक्रिय ब्लॉगर रहीं। ज्ञान-विज्ञान नाम से सामूहिक ब्लॉग की शुरुआत आशीष गर्ग ने की शायद साई और तस्लीम के पहले।

    ओह न जाने कितनी यादें हैं भाई जी। सब इधर-उधर से और न जाने किधर-किधर से आ आकर कह रही हैं कि हमें क्यों छोड़ दिया लेकिन क्या करें? हर लेखन की सीमा होती है।

    बावजूद तमाम ऐसी बातों का जिनका उल्लेख होने से रह गया और जो कि सहज भी है ऐसे काम आपका प्रयास सराहनीय है। इसके लिये बधाई!

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  24. श्रद्धेय अनूप जी,
    आपने सही कहा कि हर आलेख की अपनी एक सीमा होती है , आपका यह स्नेहिल सुझाव पाकर आत्मिक अनुभूति हुयी ...आप प्रारंभिक चिट्ठकारों में से एक हैं और आपके यह सुझाव मेरे लिए अत्यंत उपयोगी है ! आपके सुझाव के आधार पर समस्त सूचनाएं एकत्रित की जा रही है और उन सूचनाओं को इस आलेख की कड़ियों में जोड़कर प्रमाणिकता का आवरण देने का प्रयास किया जा रहा है !
    सहयोग-संपर्क बनाए रखें ताकि इस दिशा में सार्थक और प्रमाणिक पहल की जा सके !
    आपका पुन: आभार अनूप जी !

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  25. रवीन्द्र जी, बहुत ही जानकारी भरा लेख है ... बधाई ...

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  26. वैसे मैंने भी अपने ब्लॉग स्वप्न मेरे ..... क़ि शुरुआत २००६ में करी .... पर सक्रीय २००८ में हुवा .... अब तक १३७ पोस्ट कर चुका हूँ ....

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  27. यह तो जोरदार प्रस्तुति हो गई. मान गए सा'ब.

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  28. श्रद्धेय अनूप जी ने यादों में बहते तो काफी कुछ बता ही दिया.

    हम तो बस इतना कहने आये हैं कि आपका प्रयास सराहनीय है. यह पन्ने दर्ज रहेंगे सदैव. बहुत उत्तम प्रयास..बधाई.

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